सोमवार, 7 अप्रैल 2008

जाती पाती पर घमासान - राजनितिक रोटी तो नहीं सेंकी जा रही?

आज कल जाती पाती पर खूब घमासान मची हुई है। क्या ये जरूरी है? कहीं हम अपनी बात को सिद्ध कराने के लिए बेकार में जिरह तो नहीं कर रहे? खैर किसी भी प्रकार की जाती पाती का मैं घोर विरोध करता हूँ। जाती पाती मैं केवल विवाह शादी टाक ही सीमित रखता हूँ। उससे ज्यादा नहीं। लेकिन जाब कोई जाती पाती के नाम पर रोटी सेंकने लगता है, तो बड़ा गन्दा लगता है। जाती पाती के लेखो पर हुए टिपण्णी को राजनितिक रूप देने की कोशिश होने लगी।
पटना के हिंदुस्तान में मैंने लेख पढ़ा। बहुत अस्चार्य हुआ की पटना में इतनी जाती वदिता अभी जमी हुई है। पत्रकार महोदय दवाई खरीदने जाते हैं तो लोग उनसे जाती पूछने लगते हैं और दवाई लिखने वाले का जाती तक बताने लगते हैं। कितनी हास्यास्पद बात है। समाचार के अनुसार कभी कभी डॉक्टर कुछ जीवन रक्षक दवाई tab तक नहीं likhate जब तक की marij की जान ना जाने लगे। क्यों डॉक्टर इतने nirdayi बनते जा रहे हैं? क्यों dukandar दवाई देने से ज्यादा दवाई लिखने वाले की जाती batane में लगा रहता है?
कभी कभी लोग वही बोलते हैं जो हम सुनना चाहते हैं। जाती पाती से हम कब ऊपर uthenge?
गाँव में लोग किसी को अपनी जाती से निकलते hain तो उसे कुजात कह जाता है। कहीं ये जाती के दलाल कुछ दिन में fatawa ना nikalane लगे की अगर amuk जाती की dava खरीदी गयी तो खरीदने वाले को कुजात निकल दिया जाएगा।
कब sudharega Bihar? जाती की हवा देते rahane से क्या लोग जाती के changul से निकल payenge?

3 टिप्‍पणियां:

MUKHIYA ने कहा…

दुःख होता है - दरअसल बात कुछ और है ! खैर - मामला इतना बढ़ गया की फलना पत्रकार को अपनी पुरी ताकत झोंक देनी पडी -

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

जात पात का जहर नेता ज्यादा बो रहे हैं और इसके जिम्मेवार हम ही हैं. हम चुनावों में जाति देख कर वोट देते हैं और फ़िर जातिवाद को कोसते हैं.

aarya ने कहा…

उपाध्याय जी!
नमस्ते
टिप्पणी के लिए धन्यवाद, रही बात आपके जाति से सम्बंधित विचार से तो मै यही कहूँगा की अगर हम अपने पुराने सभ्यता को देखें तो हमारे यहाँ कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था रही है ये जाति तो पैदायिसी कुरीति है.
रत्नेश त्रिपाठी