गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

रोम चल रहा था और निरो बंसी बजा रहा था - दिन भर नक्सल आतंक ही गूंजता रहा

चुनाव आते ही पिछले दो दिनों से सुबह सुबह उठ कर अखबार पढ़ने के बजाये टी वी खोलता हूँ. दो दिनों से सुबह जैसे टी वी खोलता हूँ मोटे मोटे अक्षरो में ब्रेकिंग न्यूज़ आता है "Naxali हमला" कितने मरे कितने घायल. मन किरकिरा हो जाता है. वो भी जब आप अपने राज्य और जिले के बारे में ये सुने. ऐसा लगता है मानो ये धूम धड़का तो आम बात जैसी हो गयी है. ये जग जाहिर है की नक्सल आतंक को काबू में करना बिहार, झारखंड या छतीशगढ पुलिस के वश की बात नहीं है. क्यों नहीं केंद्र सरकार अर्द्धसैनिक बालों को भेजकर ये मामला once for all ख़तम ही कर दे. बिहार झारखंड में तो अर्ध सैनिक बल केवल चुनाव के समय ही नज़र आते हैं. गृह मंत्री जी से आग्रह है की पाकिस्तान की चिंता छोडिए और देश की चिंता कीजिये. इतने बड़े स्तर पर नक्सल आतंकवादी रॉकेट लौन्चर और मोर्टार से हमला कर रहे हैं और हम हैं की पाकिस्तान का समाचार पढ़ कर उस पर प्रतिक्रिया जाहिर करने में लगे हैं. सच मुच सुबह सुबह ये समाचार देख कर मन कसैला हो जाता है. लगता है की क्या यार हिंदुस्तान में हैं हमलोग या श्रीलंका में? उम्मीद है की अगली सरकार चाहे जिनकी भी बने इस नक्सल आतंकवाद को काबू में कर सके. देश के विकाश में वाधक बने इन नक्सालियों को जो की लेवी के पैसे से राजा बने हुए हैं को जंगलो में ही समाप्त कर देनी चाहिए.
बहुत हो गया, वोट बैंक की राजनीति बंद कर के कम से कम हिंदुस्तान के हर कोने को हर किसी के पहुच के लायक बनानी चाहिए. कैमूर के पहाड़, गया के शेरघाटी, इमामगंज का क्षेत्र, पलामू, चतरा, लातेहार, हजारीबाग, उडीसा की कुछ भाग और छतीशगढ का जंगली क्षेत्र ऐसे लगते हैं जैसे मानो हिंदुस्तान में ना होकर किसी और देश में हो.
रोम चल रहा था और निरो बंसी बजा रहा था. ये चरितार्थ हो रही है इन चुनावों में.